गुप्त जी ने भारत-भारती में कृषकों की अवस्था का विश्लेषण करते हुए लिखा है कि ' सौ पर पचासी जन यहां निर्वाह कृषि पर कर रहे ।
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जिसके उद्देश् य हैं: कृषि में निवेश बढ़ाना ; निर्वाह कृषि को वाणिज्यिक कृषि में परिवर्तित करना और इस प्रकार कृषि को उद्योग का दर्जा देना।
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अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भारतीय कृषि के लिए कोई जगह तभी बन सकती जब घरेलू कृषि में बड़ी पूंजी का प्रवेश हो क्योंकि भारतीय कृषि अभी भी मूलत: निर्वाह कृषि है।
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जबकि वहाँ दोनों सोने के खनन और घाना में उद्योगों के रूप में लकड़ी की बिक्री कर रहे हैं, जनता और अर्थव्यवस्था के बहुमत की सबसे (या किसान) निर्वाह कृषि पर